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महाशिवरात्रि पर Kannappa का फर्स्ट लुक, अद्भुत है इस फिल्म की कहानी

तेलुगु की बेहद चर्चित फिल्म "कन्नप्पा" (Kannappa) का फर्स्ट-लुक महाशिवरात्रि के पवित्र अवसर पर जारी किया गया है। इस लुक में शिवलिंग एक झरने जैसी पृष्ठभूमि के सामने धनुषधारी वीर को दिखाया गया है जो इस फिल्म को लेकर उत्सुकता बढ़ा देता है।  
Kannappa


तेलुगु में बन रही इस फिल्म में कन्नप्पा की मुख्य भूमिका मोहन बाबू के बेटे और जाने माने अभिनेता विष्णु मंचू निभाने जा रहे हैं। इस फिल्म का निर्देशन मुकेश कुमार सिंह कर रहे हैं और फिल्म में मधु, आर सरथकुमार और मोहन बाबू दिखेंगे। कन्नप्पा भगवान शिव के भक्त थे और फिल्म में शिव का रोल प्रभास करेंगे। साथ ही मोहन लाल और शिव राजकुमार का भी छोटा रोल होगा।

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"कन्नप्पा" 
(Kannappa) के निर्माताओं ने न्यूजीलैंड में व्यापक शूटिंग की तैयारी कर रहे कलाकारों और क्रू के फुटेज साझा करते हुए पर्दे के पीछे की एक झलक पेश की। यह फिल्म इस साल के अंत तक रिलीज होगी।


पहले से ही सितारों से सजे समूह को मजबूत करते हुए, "कन्नप्पा" में मोहन बाबू, मोहनलाल, शिवराजकुमार और प्रभास जैसे दिग्गज कलाकार शामिल हैं, अफवाहों के अनुसार प्रभास शिव की भूमिका निभाएंगे और कंगना रनौत पार्वती की भूमिका निभाएंगी। विशेष रूप से, तमिल स्टार सरथ कुमार को शामिल करने से कहानी में और भी रोचकता जुड़ गई है।

अपनी पैन इंडिया अपील के साथ, "कन्नप्पा" भाषाई सीमाओं को पार कर न केवल भारत भर में बल्कि अंग्रेजी भाषी क्षेत्रों में भी दर्शकों को लुभाने के लिए तैयार है। जैसे-जैसे प्रत्याशा चरम पर पहुंच रही है, प्रशंसक उत्सुकता से इस महाकाव्य गाथा के अनावरण का इंतजार कर रहे हैं।


Kannappa के बारे में



भगवान शिव के भक्त कन्नप्पा की इस पौराणिक कहानी को करीब 100 करोड रुपये की लागत से भव्य स्तर पर बनाया जा रहा है। फिल्म पटकथा विष्णु मंचू द्वारा लिखी गई है। घोषणा के मुताबिक फिल्म को अगले साल तेलुगु के अलावा अन्य भारतीय भाषाओं में डब कर रिलीज़ किया जाएगा।

भगवान शिव के भक्त कन्नप्पा की पौराणिक कहानी पर आधारित इस फिल्म को बनने में लगभग एक दशक लग गया। दिसंबर 2013 में, पटकथा लेखक और निर्देशक तनिकेला भरानी ने मीडिया के सामने खुलासा किया कि वह 14वीं शताब्दी पर आधारित एक पीरियड ड्रामा फिल्म के प्री-प्रोडक्शन पर काम कर रहे हैं, जिसका नाम भक्त कन्नप्पा है।


Kannappaपर पहले भी बन चुकी हैं फिल्में


कन्नप्पा को कई भारतीय फिल्मों में प्रमुख किरदार के रूप में दिखाया गया है। 1954 में, डॉ. राजकुमार कन्नड़ फिल्म बेदारा कन्नप्पा और तेलुगु फिल्म कालाहस्ती महत्यम में कन्नप्पा के रूप में दिखाई दिए। साल 1955 में एक हिंदी फिल्म, शिव भक्त में शाहू मोदक ने कन्नप्पा की भूमिका निभाई। तेलुगु में 1976 में भक्त कन्नप्पा के रूप में फिल्म बनी थी, जिसमें कृष्णम राजू ने शीर्षक भूमिका निभाई थी। कन्नड़ में 1988 में शिव मेचिदा कन्नप्पा के रूप में बनाई गई थी, जिसमें शिव राजकुमार ने बुजुर्ग कन्नप्पा और पुनीथ राजकुमार ने यंग कन्नप्पा के रूप में थे।

Kannappa कौन थे


तेलुगु लोककथाओं में कन्नप्पा को भगवान शिव का सबसे बड़ा भक्त माना जाता है। कन्नप्पा को पवित्र शैव संतों के रूप में पहचाने जाने वाले 63 नयनारों में से एक के रूप में सम्मानित किया जाता है। वह पहले नास्तिक थे और बाद मे महादेव की भक्ति में लीन हो गये। कन्नप्पा आंध्र प्रदेश में श्रीकालाहस्तीश्वर मंदिर से से जुड़े हुए हैं। लोककथा के अनुसार, कन्नप्पा, जो मूल रूप से एक शिकारी थे, जिन्होंने शिव लिंगम को चढ़ाने के लिए अपनी एक आँख निकाल ली। वो अपनी दूसरी आंख भी निकालने जा रहे थे लेकिन भगवान शिव ने उन्हें ऐसा करने से रोक दिया।

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कन्नप्पा नयनार को कई नामों से भी जाना जाता है जिनमें थिन्नप्पन, दिन्ना, धीरा, भक्त कन्नप्पा, दिनय्या, नयनमार, धीरन आदि के नाम से भी जाना जाता है। उनका जन्म एक व्याध (शिकारी कुरावर जनजाति) परिवार में हुआ था, जो आंध्र प्रदेश के राजमपेट में श्री कालाहस्ती के पास उडुपपुरा में हुआ था। उनके पिता राजा नागा व्याध एक शिकारी समुदाय के एक प्रतिष्ठित व्यक्ति और श्री कार्तिकेय के महान शैव भक्त थे। उनके माता-पिता ने उनका नाम तमिल में थिन्नन या थीरन रखा था, जिसे आज तेलुगु भाषी क्रमशः दिन्ना या धीरा के नाम से जानते हैं। कन्नप्पा की पत्नी का नाम नीला था।

पौराणकि कथाओं के मुताबिक जब अर्जुन पाशुपतास्त्र के लिए भगवान शिव का ध्यान कर रहे थे, तब उनको परखने के लिए भगवान शिव ने एक पशु शिकारी के रूप में उस जंगल में प्रवेश किया। महादेव और अर्जुन के दो तीरों के कारण मूक नामक राक्षस का वध हुआ तब शिव और अर्जुन के बीच युद्ध शुरू हो गया। अर्जुन का बाहुबल देख कर शिव ने उन्हें पाशुपतास्त्र दिया। एक लोककथा के अनुसार भगवान शिव ने उन्हें अगले जन्म में उनके सबसे बड़े भक्त के रूप में जन्म लेने का आशीर्वाद भी दिया था। कहते हैं कि अर्जुन ने ही कलियुग में कन्नप्पा नयनार के नाम से एक भक्त के रूप में जन्म लिया।

कन्नपा 
(Kannappa) का जन्म थिन्नन के रूप में हुआ था और वह श्रीकालहस्तेश्वर मंदिर के वायु लिंग के कट्टर भक्त थे, जो उन्हें शिकार के दौरान जंगल में मिला था। एक शिकारी जनजाति होने के कारण, वह नहीं जानते था कि भगवान शिव की उचित पूजा कैसे की जाती है । ऐसा कहा जाता है कि उन्होंने स्वर्णमुखी नदी से जल ला कर अपने मुख से उसे शिवलिंग पर डाला था। वह जिस भी जानवर का शिकार करते, उसे भी भगवान शिव को अर्पित करते । कहते हैं कि अशुद्ध मांस होने के बाद भी भगवान शिव ने उनकी सच्ची भक्ति को देखते हुए उनका अर्पित किया मांस स्वीकार कर लिया था ।

एक बार महादेव ने कन्नप्पन की भक्ति की परीक्षा ली। उन्होंने अपनी दैवीय शक्ति से कंपकंपी पैदा कर दी और मंदिर की छतें गिरने लगीं। कन्नप्पन को छोड़कर सभी पुजारी घटनास्थल से भाग गए, लेकिन लिंग को किसी भी क्षति न हो इसलिये कन्नप्पन ने उसे अपने शरीर से ढक दिया। इसी के बाद उनका नाम थेरान (बहादुर व्यक्ति) रखा गया।

एक बार कन्नप्पन ने देखा कि शिव लिंग की एक आंख से खून और आंसू बह रहे थे। उनको लगा कि महादेव की आंख में चोट लग गई है जिस पर उन्होंने एक तीर से अपनी एक आंख को बाहर निकाला और उसे शिव लिंग की खून बहने वाली आंख के स्थान पर रख दिया। इससे लिंग की उस आंख से खून बहना बंद हो गया। फिर उन्होंने देखा कि लिंग की दूसरी आंख से भी खून बह रहा है। ये जानते हुए कि अगर वो अपनी दूसरी आंख भी निकाल कर वहां लगा देते हैं तो वो हमेशा के लिये अंधे हो जायेंगे लेकिन फिर भी उन्होंने शिव भक्ति की अटूट श्रद्धा दिखायी। 
हालांकि कन्नप्पा ने सोचा कि अगर वह अपनी दूसरी आंख भी फोड़ लेगें तो वह अंधे हो जाएंगे और ठीक से उस स्थान को नहीं देख पायेंगे जहां से खून बह रहा है और वह दूसरी आंख को उसके ऊपर नहीं रख पायेंगे। इसलिए उसने दूसरी आंख से खून बहने के स्थान को चिह्नित करने के लिए अपने दाहिने पैर के अंगूठे को लिंग पर रखा और अपनी दूसरी और एकमात्र आंख को बाहर निकालने की तैयारी करने लगे । उनकी अत्यधिक भक्ति से प्रभावित होकर, भगवान शिव प्रकट हुए, और कन्नप्पन को दूसरी आंख निकालने से रोक दिया। यही नहीं देवो के देव महादेव ने कन्नप्पन की दोनों आंखें बहाल कर दीं। कन्नप्पा भगवान शिव के साथ लिंगम में विलीन हो गए और अंत में मोक्ष प्राप्त किया।


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